रविवार, 24 जनवरी 2010

शुभकामनाएँ 2010

आनन्द क्रांतिवर्धन हर साल नव वर्ष का स्वागत किसी ज्वलंत विषय पर लिखी अपनी कविता से करते हैं जिसे वे एक ग्रीटिंग कार्ड के रूप में सभी मित्रों को भेजते हैं। इस साल उनकी कविता हम नराकास की इस साझा ब्लॉग पत्रिका में प्रकाशित कर रहे हैं। आशा है भविष्य में वे स्वयं भी इसके लेखक बन कर इस साझा पत्रिका  में अपनी व अपने संगठन के अन्य कार्मिकों की रचनाएँ व समाचार प्रकाशित करके अपना सहयोग देंगे।


                                                                                                                                            -भूपेन्द्र कुमार


हे धरती,


तुम्हारी लय बिगड़ रही है


सांसें उखड़ रही हैं


तुम्हारी नब्ज़ मंद पड़ती जा रही है


और असमय ही तुम्हें गहरी नींद आ रही है


हवा में गूँज रहा है तुम्हारा प्रलाप


क्योंकि बढ़ता ही जा रहा है तुम्हारा ताप


पर यकीन करो


हम तुम्हें मरने नहीं देंगे


तुम्हारी सेहत के बारे में


कोई न कोई निर्णय ले ही लेंगे


माना कि तुम्हारे लिए


एक-एक मिनट भारी है


पर इतनी अधीर मत बनो


मीटिंग अभी जारी है




हे धरती,


कितने आश्‍चर्य की बात है


और यह मेरे लिये गहरा आघात है


तुम हमारे ज़रा-से लालच को नहीं सह पाईं


थोड़े से दबाव में ही


तुम्हारे चेहरे पर


असंख्य बीमारियाँ उग आईं


तुम्हारा तो मानचित्र ही बदल गया है


ओज़ोन के सुरक्षा कवच में छेद हो गया है


ध्रुवों के बैंकों में जमा


तुम्हारी भविष्य निधि का कोष


पिघलने लगा है


पृथ्वी-भक्षी बन समुद्र


द्वीपों को निगलने लगा है


दरकने लगी है


तुम्हारी उर्वर देह


अब सावन में भी नहीं भिगोता मेह




अतृप्ति में,


कोई नहीं है हमारा सानी


हमारी प्यास


पी गई है तुम्हारा सारा पानी


इसीलिए तुम्हें डी-हाईड्रेशन हो गया है


भू-जल स्तर


पाताल तक पहुंच गया है


रेगिस्तान का अजगर


जीभ लपलपाता बढ़ने लगा है चारों ओर


इसीलिए “बनाना कन्ट्रीज”


इकट्ठे हो कर मचा रहे हैं शोर




हे धरती, विवेक से काम लेना


इनकी बातों पर ध्यान मत देना


हम तुम्हारी चिंताजनक-स्थिति के बारे में


कन्सेंसस बनाने की कोशिश करेंगे


और आम सहमति बनते ही


तुम्हारे लिए कुछ न कुछ जरूर करेंगे




अभी मुझे माफ़ करना


ज़रा जल्दी में हूँ


दो दिन से अपने कुत्तों से नहीं मिला हूँ


कई ज़रूरी सवाल मेरे सामने खड़े हैं


कितने ही महत्वपूर्ण काम बाक़ी पड़े हैं


अभी शेयर बाज़ार को संभलने दो


अर्थव्यवस्था को मंदी से


उबरने दो




तुम्हें बस दो हज़ार पचास तक


इंतज़ार करना होगा


तब तक कम से कम


दो डिग्री बुखार तो तुम्हें सहना होगा


मैं नहीं देख सकता


तुम्हे तिल-तिल कर मरती


तुम सुन रही हो ना धरती




ऐ मेरी विकसित और विकासशील संतानों


अंधे विकास की होड़ में


अपने स्वार्थ के परों को


इतना मत तानो


कि मैं अपने परिपथ से


विचलित हो जाऊँ


और अपनी असंख्य निर्दोष संतानों के साथ


ब्लैक होल में समा जाऊँ




हे कालिदास तुम किस बात पर ऐंठे हो


उसी को काट रहे हो


जिस डाल पर बैठे हो


अपने भीतर अचेत पड़े विवेक को


झकझोर कर जगाओ


और “प्वाइंट ऑफ नो रिटर्न”


आने से पहले ही


वापस लौट जाओ


अभी इतना भर करो ..... बस


मुबारक हो दो हजार दस


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-आनन्द क्रांतिवर्धन

सहायक महाप्रबन्धक(हिन्दी)

भारतीय खाद्य निगम, मुख्यालय

16-20, बाराखंबा लेन, नई दिल्ली-110001