हर बगिया में छितराई फूलों की टोली है
छाए रंग बहारों में होली है या रंगोली है
गीतों ग़ज़लों की झड़ी है लगी अब हर महफिल में
बे बहर की ग़ज़ल भी सुन लो, बुरा न मानो होली है
सिंधी ना गुजराती न मराठी मेरी भाषा
प्यार की भाषा जो बोले, वो मेरी ही बोली है
कि गले मिलना औ होली खेलन सब भूले हैं
टीवी कंप्यूटर की फसल ये कैसी बो ली है
अपना हित मत साधो, सत्ता छिन भी सकती है
सियासत से मत खेलो, जनता अब ना भोली है
मत पूछो किस-किस ने जान गँवाई बदले में
तुमने जब भी प्यार के बदले नफरत घोली है
बम डालो या फूल मुहब्बत के, ये तुम पर है
इन्साँ की ख़ातिर फैला दी मैंने झोली है
-भूपेन्द्र कुमार
दि न्यू इंडिया एश्योरेंस कं. लि.
नई दिल्ली
बुधवार, 3 मार्च 2010
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