बुधवार, 3 मार्च 2010

होली है या रंगोली है

हर बगिया में छितराई फूलों की टोली है
छाए रंग बहारों में होली है या रंगोली है

गीतों ग़ज़लों की झड़ी है लगी   अब   हर   महफिल में
बे बहर की ग़ज़ल भी सुन लो, बुरा न मानो होली है

सिंधी   ना  गुजराती     न   मराठी  मेरी  भाषा
प्यार की भाषा जो बोले, वो मेरी ही बोली है

कि गले मिलना औ होली खेलन सब भूले हैं
टीवी कंप्यूटर की   फसल ये कैसी   बो ली  है

अपना हित मत साधो, सत्ता छिन भी सकती है
सियासत से मत खेलो, जनता अब ना भोली है

मत पूछो किस-किस ने   जान गँवाई   बदले में
तुमने जब भी प्यार के बदले नफरत घोली है

बम डालो या फूल मुहब्बत के, ये तुम पर है
इन्साँ  की   ख़ातिर    फैला  दी  मैंने  झोली  है

-भूपेन्द्र कुमार
दि न्यू इंडिया एश्योरेंस कं. लि.
नई दिल्ली