सोमवार, 25 जुलाई 2011

सचिव राजभाषा, भारत सरकार, गृह मंत्रालय का साक्षात्कार। प्रस्तुति - मेखला दत्ता, उप महा प्रबंधक(राजभाषा), एयर इंडिया

राजभाषा हिन्दी सबल सोपानों की ओर ...
                                                                                          वीणा उपाध्याय
                                                                                                                       सचिव, राजभाषा

कर्मठता, कार्यनिष्ठा और व्यवस्थित कार्य योजना के साथ नई उपलब्धियों, नई सफलताओं की ओर बढ़ते हुए उन्नति की नई परिभाषा लिखने में सक्षम सुश्री वीणा उपाध्याय भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1976 बैच की यू.पी. काडर की अधिकारी हैं। भारत सरकार में वित्त, आर्थिक कार्य, कृषि व पर्यावरण विभाग और वन मंत्रलय आदि में काम करने का लंबा अनुभव रखने वाली सुश्री वीणा उपाध्याय वर्तमान में गृह मंत्रलय के राजभाषा विभाग में सचिव के रूप में राजभाषा हिंदी के प्रसार कार्य से जुड़ी हुई हैं।
यहां प्रस्तुत है, अपने कार्यों के माध्यम से सभी को प्रेरित करने वाली सुश्री वीणा उपाध्याय से 'विमानिका' की बातचीत जिसे इस ब्लॉग पर प्रकाशनार्थ हमें श्रीमती मेखला दत्ता( उप महा प्रबंधक, राजभाषा, एयर इंडिया)  ने हमें भेजा है। अन्य उपक्रमों के राजभाषा अधिकारियों से भी अनुरोध है कि इस ब्लॉग  में प्रकाशनार्थ उपयोगी सामग्री समय-समय पर भेजें।
-भूपेन्द्र कुमार

विमानिका: आज़ादी के 62 वर्ष बाद आज भारत में राजभाषा की दशा और दिशा के बारे में आप क्या सोचती हैं और क्या इस ओर किए जा रहे प्रयास संतोषजनक हैं?

वीणा उपाध्याय: देखिए, सच्चाई तो यही है कि आज़ादी के इतने वर्षों बाद हिंदी को जो स्थान मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल पाया है। इस दौरान फिल्मों, टी.वी. और प्रिंट मीडिया के माध्यम से हिंदी का अभूतपूर्व प्रसार हुआ है लेकिन शिक्षा जगत तथा शासकीय कार्यप्रणाली में उस अनुपात में कार्य नहीं हो पाया। इस तथ्य के साथ ही यह बात भी बिलकुल सही है कि हिंदी के प्रति हमारी मानसिकता में बदलाव ज़रूर आया है। साठ और सत्तर के दशक के मुकाबले आज की मानसिकता बदली है। साठ के दशक में हिंदी के प्रति विरोध का जो भाव था उसमें ठोस रूप से कमी आई है।
अभी हाल ही में मैंने विशाखापट्रटनम में आयोजित क्षेत्रीय सम्मेलन में भाग लिया जहाँ आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति जी ने, जो स्वयं बहुत अच्छी हिंदी बोलने में सक्षम नहीं थे, अपने वक्तव्य में शिक्षण में व्यापक तौर पर हिंदी के प्रयोग पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हिंदी में सम्यक प्रवीणता की प्राप्ति हेतु प्राज्ञोत्तर क्रैश कोर्स होना चाहिए। मैं समझती हूं कि एक दक्षिण भारतीय राज्य के कुलपति का यह कहना दक्षिण भारत में आ रहे इस परिवर्तन का ही द्योतक था।
आंध्रप्रदेश ही भारत का वह दक्षिण भारतीय राज्य है जहां हिंदी भवन का निर्माण किया गया है।
आंध्र विश्वविद्यालय में राजभाषा हिंदी की नीति और कार्यान्वयन को समर्पित एक वर्षीय कोर्स चलाया जा रहा है। तमिलनाडु और केरल में राजभाषा हिंदी के प्रसार के लिए बहुत सी नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियाँ गठित की गई हैं जो बहुत अच्छा काम कर रही हैं। इससे धरातल स्तर पर, हिंदी के प्रति जागरूकता व सौहार्द में वृद्घि हो रही है। इसी तरह गोवा में आयोजित क्षेत्रीय सम्मेलन में मुझे एक बात ने बहुत प्रभावित किया जब गोवा विश्वविद्यालय के कुलपति जी ने गोवा को राजभाषा कार्यान्वयन के 'ग' क्षेत्र से निकालकर 'ख' में रखने की सिफारिश की। हाल ही में दादरा नगर हवेली, दमन व दीव के प्रशासकों ने भी हमें लिखकर भेजा है कि इन क्षेत्रों को 'ग' क्षेत्र से हटाकर 'ख' क्षेत्र में वर्गीकृत करें। इस केन्द्र शासित संघीय क्षेत्र के दोनों माननीय सांसदों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है। इस तरह धीरे-धीरे हिंदी के प्रति धरातल परिवर्तन के साथ-साथ और अधिक सहृदयता का भाव नज़र आ रहा है जो बहुत सकारात्मक है।

विमानिका: राजभाषा कार्यान्वयन के लिए जहां अधिनियम, नियम और संकल्प बने वहीं कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए अलग राजभाषा विभाग भी बनाए गए हैं। आज के संदर्भ में ये राजभाषा विभाग अलग विभाग बन कर रह गए हैं। पूरे संगठन में, पूरे संस्थान में राजभाषा कार्यान्वयन के लिए जो समन्वयन कार्य किया जाना था वो संभवत: संपन्न नहीं हो पाया है और राजभाषा विभाग संगठन की मुख्यधारा से कहीं अलग हो गया, ये मान लिया गया। इस संबंध में आपकी क्या राय है ?

वीणा उपाध्याय: देखिए, विभिन्न उपक्रमों में राजभाषा विभाग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। कई जगह मुख्यधारा से जुड़कर भी कार्य किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं जो बहुस्तरीय हैं और इन प्रयासों के परिणाम भी आ रहे हैं। विशेषकर, बैंकों और उपक्रमों में हिंदी का प्रयोग काफी बढ़ा है
अभी हाल ही में मैंने गोवा में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के राजभाषा अधिकारियों के अखिल भारतीय सम्मेलन को संबोधित किया। इस सम्मेलन में उन्होंने एक पावर प्वाइंट प्रेज़ेन्टेशन रखा था। उसमें उन्होंने दिखाया कि वर्ष 1919 में भी यूनियन बैंक में कार्यवृत्त द्विभाषी रूप में जारी किए जा रहे थे और वर्ष 1975 तक उन्होंने राजभाषा कार्यान्वयन समिति की 100 बैठकें पूरी कर ली थीं।
इस तरह राजभाषा कार्यान्वयन की दिशा में यूनियन बैंक का इतिहास बहुत ही समृद्घ रहा है। साथ ही एक बात और जो मैं यहां ज़रूर बताना चाहूंगी वह यह है कि वहां राजभाषा से जुड़े अधिकारियों को मुख्यधारा के अन्य विभागों में पदोन्नति का मौका दिया जाता है जो बहुत ही उत्साहवर्धक और आशावादी रवैया है। इसी तरह पीएनबी तथा एनटीपीसी में भी बहुत अच्छा काम हो रहा है। गुवाहाटी में एयरपोर्ट अथॉरिटी के कार्यालय में राजभाषा प्रसार की एक बहुत ही प्रेरणादायक योजना शुरू की गई है जिसके अंतर्गत जो भी कर्मचारी हिंदी में अच्छा काम करते हैं, उन्हें उनके परिवार सहित मनपसंद गंतव्य की टिकट दी जाती है।

विमानिका: सूचना और प्रौद्योगिकी के युग में जहाँ हम आर्थिक विकास की बात कर रहे हैं, विश्व से कदम मिलाने की सोच रहे हैं, ऐसी स्थिति में जब अंग्रेजी संप्रेषण की मुख्य भाषा के रूप में स्थापित हो रही है, हिंदी किस प्रकार अपना स्थान बनाए रख सकती है और इस दिशा में सरकार की ओर से क्या प्रयास रहेंगे?

वीणा उपाध्याय: सूचना प्रौद्योगिकी और हिंदी का प्रसार दोनों ही अंतरंग रूप से जुड़े हुए हैं। जहां तक इस दिशा में सरकार द्वारा काम किए जाने की बात है तो राजभाषा विभाग द्वारा इस क्षेत्र् में कुछ टूल्ज़ विकसित करने के लिए सी-डैक के साथ एग्रीमेंट किया गया था। आप ये मानेंगे कि यह आसान क्षेत्र नहीं है; फिर भी जितनी प्रगति इस क्षेत्र में अभी तक हुई है वह संतोषजनक नहीं है।
यहाँ मैं सी-डैक द्वारा विकसित दो टूल्ज़ 'श्रुतलेखन' तथा 'मंत्र' की बात करना चाहूंगी। इन दोनों में से 'श्रुतलेखन' तो काफी हद तक ठीक है लेकिन हिंदी अनुवाद के लिए विकसित टूल 'मंत्र' को उतनी सफलता नहीं मिली है। इसलिए अब हमने यह निर्णय लिया है कि यूज़र डिपार्टमेंट और सॉफ्टवेयर डेवलपर के बीच संपर्क स्थापित किया जाना चाहिए क्योंकि हर विभाग, हर मंत्रलय में प्रयोग किए जाने वाले शब्दों का विशेष संदर्भ होता है। इसलिए अलग-अलग स्थान पर एक ही शब्द का अर्थ अलग-अलग हो जाता है। सी-डैक ने हमें बताया है कि राज्यसभा सचिवालय के साथ इस प्रकार काम करने में उन्हें काफी सफलता मिली है। इसलिए हमने शुरूआत में पांच मंत्रालयों से यह अनुरोध किया है कि वे अपने-अपने मंत्रालय से दो या तीन व्यक्ति जिन्हें चैम्पियन कहा जाएगा, को नामित करें जो सी-डैक के साथ मिलकर डोमेन स्पेशलिस्ट के रूप में काम कर सकें। अब अगर इसमें हमें सफलता मिलेगी तो अन्य विभागों और मंत्रलयों में भी हम इसी प्रयोग को आगे बढ़ाएंगे।
यह काम काफी महत्त्वपूर्ण है, इस परिवर्तन में समय लगना स्वाभाविक है। लेकिन यह मानकर कि इस परिवर्तन में समय लगेगा हम कोई निश्चित रणनीति न बनाएं, ये ठीक नहीं होगा।

विमानिका: अभी हाल ही में आपने राजभाषा विभाग में कार्यभार संभाला है, आपको कैसा लग रहा है और इस बीच आपने विभाग में क्या नया करने का प्रयास किया है?

वीणा उपाध्याय: मैंने 01 नवम्बर, 2010 को यहां चार्ज लिया और मुझे अभी यहां आए लगभग तीन महीने हुए हैं। मुझे यहां काम करना बहुत अच्छा लग रहा है। मैं आपको बताना चाहूंगी कि हिंदी मेरे मन के बहुत करीब है और यह मेरा पसंदीदा विषय रहा है। कॉलेज में पढ़ते हुए मैं बी.ए की परीक्षा में पूरे पंजाब विश्वविद्यालय में हिंदी विषय में प्रथम रही थी। इसके अतिरिक्त मैनें बी.ए. ऑनर्स व एम.ए.अंग्रेज़ी साहित्य में किया। आई.ए.एस. की परीक्षा में भी दो पर्चे अंग्रेज़ी साहित्य व एक हिन्दी साहित्य का लिया। अत: मैं सहज रूप से द्विभाषी हूँ।

इस विभाग में काम करना इसलिए भी उत्साहपूर्ण लग रहा है क्योंकि गृहमंत्री महोदय राजभाषा प्रसार की ओर विशेष ध्यान देते हैं और रुचि लेते हैं। यहां आने के बाद सबसे महत्त्वपूर्ण पहल जो मैंने की है वह मंत्री महोदय के मार्गदर्शन में ही की है। हम जो क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन आयोजित करते थे उन्हें और कारगर बनाने के लिए, माननीय मंत्री महोदय ने यह सुझाव दिया कि इन सम्मेलनों को क्षेत्रीय विश्वविद्यालयों और छात्रों से जोड़ा जाए। पहले हम इन क्षेत्रीय सम्मेलनों का आयोजन किसी भी उपलब्ध स्थान पर करते थे परंतु अब हम कोशिश करते हैं कि यह आयोजन विश्वविद्यालय परिसर में हो ताकि विश्वविद्यालयों के कुलपति, प्रोफेसर तथा छात्र इन सम्मेलनों से जुड़ सकें। अभी तक हमने विशाखापट्रटनम और गोवा में इस प्रकार के सम्मेलन किए हैं तथा आगे ऐसे ही दो अन्य समारोह शिमला, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय तथा गंगटोक में भी करने की योजना है। इसके अतिरिक्त, मैंने विभाग की वेबसाइट के व्यापक सुधार की तरफ भी ध्यान दिया है क्योंकि मैं मानती हूं कि विभाग की वेबसाइट बाहरी लोगों के समक्ष विभाग का चेहरा है। हमने इसे और सुव्यवस्थित, सुरुचिपूर्ण व सर्वपक्षीय बनाया है। राष्ट्रपति आदेशों की अद्यतन स्थिति, क्षेत्रीय अवस्थापना के सचित्र प्रस्तुतिकरण के अतिरिक्त आयोजनों की व्यापक कवरेज़ तथा सदस्य अधिकारियों के चित्र व अर्हताओं के विवरण भी दिए गए हैं। हम अपनी वेबसाइट को बहुआयामी, व्यापक और गहन बना रहे हैं। वेबसाइट को अद्यतन रखने के लिए हमने एडिटोरियल बोर्ड भी गठित किया है। राजभाषा सचिव के रूप में मैं स्वयं उसकी अध्यक्षता करती हूं। इस बोर्ड की नियमित रूप से माह के प्रति प्रथम तथा तृतीय बृहस्पतिवार को पाक्षिक बैठकें की जाती हैं। एक और महत्त्वपूर्ण प्रयास जो हमने किया है वह है हिंदी के प्रसार के लिए विभाग का बजट बढ़ाने की कोशिश। आने वाले वर्ष में विभाग का बजट पांच करोड़ रुपए से बढ़कर बीस करोड़ रुपए हुआ है।
इससे प्रचार पर प्रचुर राशि का प्रयोग किया जायेगा। विभिन्न कल्पनाशील मुद्रण व दृश्य-श्रव्य माध्यमों से व सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हुए राजभाशा हिन्दी के प्रावधानों, शब्दकोश, आई.टी.टूल्ज़, महापुरूषों के उद्गारों व उत्कृष्ट प्रयोगों (बेस्ट प्रैक्टिसिस) का व्यापक प्रसार किया जायेगा। विभिन्न प्रकार से विज्ञापनों और होर्डिंग द्वारा हम इस दिशा में और जागरूकता लाने का प्रयास करेंगे। इसके अतिरिक्त हिंदी अनुवाद, कार्यशाला, पेपर सैटिंग, पुरस्कार राशि आदि से संबंधित पारिश्रमिक की दरें बहुत पुरानी थीं, हमने उन्हें बढ़ाया है। साथ ही इस क्षेत्र में अधिकारियों/कर्मचारियों द्वारा किए जा रहे कार्यों के मापदंड बहुत पुराने थे जिसकी वजह से कार्य उपलब्धि का स्तर बहुत कम हो रहा था और मैं समझती हूं कि जैसे-जैसे आपका अनुभव बढ़ता जाता है, आपकी कार्यक्षमता भी बढ़ती है तो उसी हिसाब से कार्य के मापदंडों में भी बदलाव ज़रूरी था। हमने इस दिशा में सुधार किया है।

हमारी उपलब्धि का एक और हिस्सा नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियों से जुड़ा है। आज की तिथि में हमारे देश में कुल 274 नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियाँ हैं और हमारा प्रयास है कि शीघ्र ही यह संख्या 300 हो जाए। पिछले वर्षों में प्रतिवर्ष औसतन 4 से 5 'नराकास' (नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियाँ) जुड़ती थीं पर हम सुव्यवस्थित रूप से इस ओर काम कर रहे हैं और हमारा प्रयास है कि प्रतिवर्ष कम से कम 20 से 25 नई नराकास जुड़ें। इसके अलावा क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालयों के क्षेत्राधिकारों को और तर्कसंगत बनाने के साथ-साथ हमारे विभाग की अन्य इकाइयों के बीच आपसी समन्वय को भी मैंने और मज़बूत करने की कोशिश की है और यह मेरा सौभाग्य है कि मंत्री महोदय की ओर से इस ओर मार्गदर्शन मिलने के साथ-साथ विभाग में मेरे अधिकारियों की टीम का भी मुझे पूरा सहयोग मिला है। यह सभी उपलब्धियाँ इसी का नतीजा हैं।

विमानिका: 'निज भाषा उन्नति अहे सब उन्नति को मूल' बरसों बरस पहले भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने भाषा और उन्नति के जिन संदर्भों को जोड़ा था आज के समय में आप उन्हें कितना सटीक मानती हैं

वीणा उपाध्याय: बिल्कुल सही है बरसों बरस पहले लिखी गई भारतेन्दु जी की यह पंक्तियां आज भी उतनी ही सटीक हैं। यह निर्विवाद सत्य है कि जो अपनी भाषा का सम्मान करेगा वह दूसरी भाषाओं का भी सम्मान करेगा। आपकी भाषा आपकी पहचान होती है, आपकी संस्कृति की वाहिका होती है। भाषा के प्रति सम्मान के बिना आप संस्कृतिहीन, सभ्यताहीन समाज की ओर बढ़ने लगेंगे क्योंकि मैं मानती हूँ कि आपके जीवन का सांस्कृतिक, बौद्घिक पक्षों से संबंध भाषा के माध्यम से ही होता है।

विमानिका: विश्व मंच पर आज जिस तरह सभी राष्ट्र अपनी अलग पहचान बनाने के लिए प्रयासरत हैं, आपके विचार में विश्व मंच पर भारत की पहचान बनाने में हिंदी क्या और कितनी भूमिका निभा सकती है?

वीणा उपाध्याय: अगर आज की बात करें तो हिंदी विश्व मंच पर बोली जाने वाली तीसरी भाषा के रूप में है और आंकड़ों के अनुसार लगभग 135 यूनिवर्सिटियों में हिंदी पढ़ाई जाती है और लगभग 93 देशों में बोली जाती है। 110 करोड़ भारतीयों में से 70 प्रतिशत लोग हिंदी बोलते और समझते हैं। विदेशों में जो भारतीय रहते हैं उनकी भी संपर्क भाषा हिंदी ही है। विश्वमंच पर हिंदी की पहचान को और सुदृढ़ करने के लिए हिंदी को यूएन की भाषा बनाने के प्रयास जारी हैं और मैं मानती हूं कि हिंदी की अपनी अलग पहचान बनी हुई है।

अभी हाल ही में मॉरिशस में विश्व हिंदी दिवस का आयोजन किया गया जहां मॉरिशस के राष्ट्रपति सर अनिरूद्घ जगन्नाथ ने अपना अध्यक्षीय वक्तव्य दिया। इस अवसर पर हिन्दी के प्रसार पर विचार संगोष्ठी का भी आयोजन हुआ जिसमें मैंने व अन्य कई अंतर-राष्ट्रीय स्तर के बुद्घिजीवियों ने भाग लिया। मॉरिशस में हिंदी के प्रयोग के लिए बहुत सकारात्मक वातावरण है और मॉरिशस ने हिंदी के संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनने में अपना समर्थन देने की उत्साहित तत्परता प्रकट की है।

विमानिका: अब एक व्यक्तिगत प्रश्न- आपकी रुचियाँ क्या हैं और आपकी व्यस्त दिनचर्या में फुरसत के क्षणों में आप क्या करना पसंद करती हैं?

वीणा उपाध्याय: मुझे पढ़ने का बहुत शौक है। मैं आर्थिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और पर्यावरण आदि जैसे विषयों पर किताबें पढ़ना पसंद करती हूँ। इसके अलावा मुझे बाग़वानी का शौक है, व्यवस्थापरक सुधारों का शौक, नई जगहें देखना, नए लोगों से मिलना भी मुझे बहुत अच्छा लगता है।