मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

वैज्ञानिक अनुसंधान - मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है हिन्दी का प्रयोग

विज्ञान पत्रिका करेंट साइंस में एक अनुसंधान का विवरण प्रकाशित हुआ है, जिसके बारे में हिन्दी दैनिक राष्ट्रीय सहारा में भी एक समाचार प्रकाशित हुआ है। राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केन्द्र द्वारा किए गए इस अनुसंधान का निष्कर्ष यह है कि अंग्रेज़ी की तुलना में हिन्दी भाषा के प्रयोग से मस्तिष्क अधिक चुस्त दुरुस्त रहता है।

अनुसंधान से संबन्धित मस्तिष्क विशेषज्ञों का कहना है कि अंग्रेज़ी बोलते समय दिमाग का सिर्फ बायाँ हिस्सा सक्रिय रहता है, जबकि हीन्दी बोलते समय मस्तिष्क का दायाँ और बायाँ, दोनों हिस्से सक्रिय हो जाते हैं जिससे दिमाग़ी स्वास्थ्य तरोताज़ा रहता है। राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केन्द्र की भविष्य में अन्य भारतीय भाषाओं के प्रभाव पर भी अध्ययन करने की योजना है।

अनुसंधान से जुड़ी डॉ. नंदिनी सिंह के अनुसार, मस्तिष्क पर अंग्रेज़ी और हिन्दी भाषा के प्रभाव का असर जानने के लिए छात्रों के एक समूह को लेकर अनुसंधान किया गया। अध्ययन के पहले चरण में छात्रों से अंग्रेज़ी में जोर-जोर से बोलने को कहा गया और फिर हिन्दी में बात करने को कहा गया। इस समूची प्रक्रिया में दिमाग़ की हरकतों पर एमआरआई के ज़रिए नज़र रखी गई। परीक्षण से पता चला कि अंग्रेज़ी बोलते समय छात्रों के दिमाग का सिर्फ बायाँ हिस्सा सक्रिय था, जबकि हिन्दी बोलते समय दिमाग के दोनों हिस्से (बायाँ और दायाँ) सक्रिय हो उठे।

अनुसंधान दल के मुताबिक, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अंग्रेज़ी एक लाइन में सीधी पढ़ी जाने वाली भाषा है, जबकि हिन्दी शब्दों के ऊपर-नीचे और बाएँ-दाएँ लगी मात्राओं के कारण दिमाग को इसे पढ़ने में अधिक कसरत करनी पड़ती है, जिससे इसका दायाँ हिस्सा भी सक्रिय हो उठता है। इस अनुसंधान के परिणामों पर जाने माने मनोचिकित्सक डॉ. समीर पारेख ने कहा कि ऐसा संभव है। उनका कहना है कि हिंदी की जिस तरह की वर्णमाला है, उससे मस्तिष्क को कई फायदे हैं।
 
अभी तक हम हिन्दी के समर्थन में आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भावनात्मक तर्क देते थे, मगर इस अनुसंधान के बाद अब यह वैज्ञानिक पक्ष भी जुड़ गया है। आशा है इस तथ्य को जान लेने के बाद लोग हिन्दी प्रयोग की ओर अवश्य प्रवृत्त होंगे। अतः हम सबका यह कर्तव्य है कि इस समाचार का अधिक से अधिक प्रचार करें।
 
-भूपेन्द्र कुमार
सहायक प्रबन्धक,
दि न्यू इंडिया एश्योरेंस कं. लि., दिल्ली क्षेत्रीय कार्यालय-1

सोमवार, 7 दिसंबर 2009

राजभाषा हिंदी - दायित्‍व एवं निर्वाह

26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होते ही हमारे देश की राजभाषा हिंदी हो गई। यह अलग बात थी कि संविधान में संघ के कार्यों के लिए पंद्रह वर्षों तक हिंदी के साथ अंग्रेजी के प्रयोग को जारी रखने की भी व्‍यवस्‍था की गई। जिसका मंतव्‍य यह था कि संघ सरकार का कामकाज हिंदी में धीरे-धीरे बढ़ाया जाएगा और 15 वर्षों की समाप्‍ति के बाद हिंदी पूर्णत: संघ की राजभाषा हो जाएगी। आज संविधान लागू हुए 59 वर्ष बीत गए परंतु सरकारी कामकाज में राजभाषा हिंदी का प्रयोग अभी भी उतना नहीं हो पा रहा है जितना होना चाहिए था। सरकार ने सरकारी कर्मचारियों की व्‍यावहारिक कठिनाईयों को ध्‍यान में रखकर ही राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय के अंतर्गत हिंदी शिक्षण योजना की शुरूआत की थी जिसके अंतर्गत कर्मचारियों के हिंदी शिक्षण की व्‍यवस्‍था की गई है ताकि वे हिंदी सीख कर अपना कार्यालयी कार्य सहजता से हिंदी में संपादित कर सके। पूरे देश में हिंदी शिक्षण योजना के कई उप केंद्र भी खोले गए जिसका उद्देश्‍य कर्मचारियों को बिना किसी परेशानी के हिंदी सीखने में मदद करना है। आज तो भारत सरकार का राजभाषा विभाग ऑन-लाइन हिंदी का शिक्षण उपलब्‍घ करा रहा है परंतु इन सब के बावजूद सरकारी विभागों की फाइलों से हिंदी अभी भीक्‍यों नदारद  है यह समझ से परे है। ऐसा भी नहीं है कि हिंदी लोगों को आती नहीं है। लगभग पूरे देश में हिंदी सभी को आती है। प्रिंट मीडिया और इलैक्‍ट्रॉनिक मीडिया के प्रसार से हिंदी जानने वालों की संख्‍या में आशातीत वृद्धि हुई है। हिंदी जानने वाले देश के हर कोने में मौजूद है। कश्‍मीर से लेकर कन्‍याकुमारी तक सभी को हिंदी आती है। पर ऐसा क्‍या कारण है कि पूरे देश के सरकारी कार्यालयों में प्रोत्‍साहन योजनाओं, आवधिक कार्यशालाओं के नियमित आयोजन, हिंदी पखवाड़ा, हिंदी माह मनाने के बावजूद भी संघ का कार्य राजभाषा में क्‍यों नहीं हो पा रहा है। काफी चिंतन एवं मनन के पश्‍चात यह विचार बार-बार आता है कि हिंदी को संघ की राजभाषा बनाने में हमारे वरिष्‍ठ अधिकारियों का अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पा रहा है। वे अपने कार्यालयी कार्य की भाषा के रूप में हिंदी को अपनाने में कतरा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इन अधिकारियों को हिंदी नहीं आती है अथवा कम आती है। इन अधिकारियों का हिंदी ज्ञान इनके हिंदी पखवाड़ा, हिंदी कार्यशालाओं, राजभाषा सम्‍मेलनों तथा अन्‍य सार्वजनिक अवसरों पर मुखरित होता है तथा ये स्‍वीकार भी करते हैं कि हिंदी, हिंद की केवल एक भाषा नहीं बल्‍कि पूरी संस्‍कृति है और अपनी संस्‍कृति से विहीन देश मौलिक विकास नहीं कर सकता है।परंतु हिंदी लिखने के अभ्‍यास में कमी की वजह से ये अधिकारी हिंदी में काम नहीं कर पाते हैं। अक्‍सर देखा गया है कि जो भी वरिष्‍ठ अधिकारी अपना कार्य हिंदी में करता है उसके अधीनस्‍थ सभी अधिकारी व कर्मचारी अपना अधिकाधिक कार्य हिंदी में और अधिक करने के लिए तत्‍पर रहते हैं। जहां तक कनिष्‍ठ अधिकारियों एवं कर्मचारियों की बात है उन सभी को हिंदी इतनी आती है कि उनके लिए हिंदी में काम करना कठिन नहीं बल्‍कि सहज है। वे अपने मनोभावों को हिंदी में व्‍यक्‍त करने में सहजता महसूस करते है और उनकी कार्य निष्‍पादन क्षमता भी बढ़ी हुई पाई गई है। अत: जब तक कार्यालय के शीर्ष अधिकारी हिंदी में कार्य करने के लिए अपने विभाग, संस्‍था, संस्‍थान, कार्यालय का स्‍वयं आगे बढ़कर नेतृत्‍व नहीं करेंगे तब तक संघ का कार्य हिंदी में करने की बात करना महज एक दिवास्‍वप्‍न होगा। अत: संघ का कार्य हिंदी में हो इसकी जिम्‍मेदारी सर्वप्रथम हमारे शीर्षस्‍थ अधिकारियों पर है। जब तक ये अधिकारी अपने कर्तव्‍य का पालन नहीं करेंगे तब तक अन्‍य से ऐसी अपेक्षा करना उचित नहीं होगा। प्रश्‍न यह है कि शीर्ष पर बैठे इन विज्ञ व जिम्‍मेदार अधिकारियों को उनकी राजभाषा संबंधी जिम्‍मेदारी का एहसास कौन और कैसे कराया जाए। उम्‍मीद की जाती है कि कभी न कभी तो इन्‍हें खुद ब खुद अपनी जिम्मेदारी का एहसास होगा और इनकी अंतरात्‍मा, इनका आत्‍मचिंतन इन्‍हें हिंदी को आत्‍मसात करने के लिए विवश कर देगी। पूरे विश्‍व में अपनी कार्यक्षमता का लोहा मनवाने के बाद भारतीय अफसरशाही को राजभाषा के कार्यान्‍वयन के लिए बस याद दिलाने की जरूरत है। 'का चुप साधि रहा बलवाना' एक बार जब इनको अपनी कार्यान्‍वयन क्षमता की याद आ जाएगी उसी दिन से हिंदी संघ की राजभाषा हो जाएगी और पूरा देश एक भाषा सूत्र में बंध जाएगा और हिंदी संघ की राजभाषा व्‍यवहार्य रूप में बन पाएगी।



विनोद राय
हिंदी अधिकारी
भारतीय कंटेनर निगम लिमिटेड

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

साक्षात्कार

एयर इंडिया की गृह पत्रिका विमानिका के लिए श्रीमती मेखला दत्ता, उप महा प्रबंधक(राजभाषा) ने सचिव, राजभाषा डॉ प्रदीप कुमार का एक स्मरणीय साक्षात्कार लिया जिसे उन्होंने नराकास के इस ब्लॉग पर भी प्रकाशनार्थ भेजा है। आशा है इससे अधिक से अधिक लोग लाभान्वित होंगे। अन्य सदस्य उपक्रमों के लेखकों से भी अनुरोध है कि वे भी रचनाएँ एवं सूचनाएँ भेजें अथवा लेखकीय अनुमति लेकर स्वयं पोस्ट करें।
-भूपेन्द्र कुमार
हिंदी हमारी पहचान से जुड़ी है ....
-डा. प्रदीप कुमार - सचिव, राजभाषा
राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार

राजभाषा विभाग के वर्तमान सचिव डॉ। प्रदीप कुमार वित्ता मंत्रालय, खान मंत्रालय, केन्द्रीय योजना मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और कृषि मंत्रालय में भी कार्य कर चुके हैं । भौतिकी और डेवलपमेंट स्टडीज (बाथ विश्वविद्यालय, यू.के.) से स्नातकोत्तार उपाधि तथा औषधीय पौधों के संबंध में लखनऊ विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त डॉ. प्रदीप कुमार का अनुभव बहुत विस्तृत है । यहां प्रस्तुत है डा। प्रदीप कुमार से विमानिका की एक बातचीत :
विमानिका:
राष्ट्र की अस्मिता, संस्कृति और पहचान में हिंदी की एक महत्वपूर्ण भूमिका है साथ ही राजभाषा विभाग भी इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है । इस संबंध में आपकी क्या राय है ?
डा प्रदीप कुमार :
हिंदी केवल हमारी संपर्क भाषा ही नहीं हमारे राष्ट्र की संस्कृति, अस्मिता और पहचान से भी जुड़ी हुई है । वर्ष 1997 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार 66 प्रतिशत भारतीय हिंदी बोल सकते हैं और 77 प्रतिशत भारतीय हिंदी समझ सकते हैं । 118 करोड़ लोग हिंदी को अपनी मातृभाषा समझते हैं और लगभग 30 करोड़ लोग हिंदी को अपनी सैकेंड लेंगवेज मानते हैं । पूरे विश्व में करीब 96 करोड़ लोग हिंदी बोलने वाले हैं और विश्वभर में सौ से अधिक देशों में प्रवासी भारतीय रहते हैं जिनकी संपर्क भाषा हिंदी है । प्रवासी भारतीय भी संस्कृति से जुड़े हुए हैं । देश से दूर रहते हुए भी वे अपने देश की पहचान को बनाए रखते हैं । एक और महत्तवपूर्ण बात यह है कि 90 प्रतिशत समाचार पत्र और मैगजीन हिंदी में हैं और इनमें बहुत से ऐसे हैं जिनमें पूजीं निवेश विदेशी है ।
हिंदी में न केवल भारत की आत्मा प्रतिबिंबित होती है बल्कि विश्व भाषा के रुप में भी हिंदी ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है । इस संबंध में भारतेन्दु जी की पंक्तियां याद आती हैं :
'निज भाषा उन्नति अहे, सब उन्नति को मूल
बिनु निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को शूल ।

विमानिका:
राजभाषा विभाग का प्रमुख उद्देश्य क्या है और आज के संदर्भ में इस उद्देश्य की पूर्ति कहां तक हो पा रही है ?

डा. प्रदीप कुमार :
सबसे पहला उद्देश्य तो राजभाषा के संबंध में संवैधानिक उपबंधों, राजभाषा अधिनियम तथा नियमों को लागू करना है और दूसरा प्रमुख कार्य सरकारी कामकाज में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देना है । इसके अतिरिक्त राजभाषा कार्यान्वयन के प्रसार की दिशा में कई समितियां कार्य कर रही हैं । केन्द्रीय हिंदी समिति, संसदीय राजभाषा समिति, हिंदीं सलाहकार समिति, नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, केन्द्रीय कार्यान्वयन समिति आदि । इन समितियों के कार्यों का समन्वय करना और बैठक आदि आयोजित करना भी राजभाषा विभाग का एक महत्तवपूर्ण कार्य है । संसदीय राजभाषा समिति राजभाषा के संबंध में जो सिफारिशें देती हैं उस पर महामहिम राष्ट्रपति महोदय के आदेश पारित कराना और फिर उनका कार्यान्वयन भी राजभाषा विभाग के कार्यों की परिधि में ही आता है ।

विमानिका:
विश्व के परिप्रेक्ष्य में आज भारत एक ऐसा बाजार बनता जा रहा है जिसपर सभी की नजर केन्द्रित है । इस संदर्भ में हिंदी की क्या भूमिका हो सकती है ?

डा. प्रदीप कुमार :
ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में भारत का महत्व बहुत बढ़ता जा रहा है क्योंकि हमारी आबादी एक बहुत बड़ा मार्केट है जिस तक विदेशी कंपनिया भी पहुंचना चाहती है। इस संदर्भ में आज हिंदी की भूमिका भी बढ़ी है ।

विमानिका:
संविधान लागू होने के 59 वर्ष बाद राजभाषा हिंदी की दिशा और दशा के बारे में आप क्या सोचते है और क्या इस ओर किए जा रहे प्रयास संतोषजनक हैं ?

डॉ प्रदीप कुमार :
और अधिक काम करने की संभावना तो हमेशा बनी ही रहती है फिर भी पिछले कुछ सालों में राजभाषा प्रसार की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं । आज के संदर्भ में सरकारी कार्यालयों में अधिकतर काम कम्प्यूटर पर ही किया जाता है तो कम्प्यूटर में हिंदी के प्रयोग पर बल दिया गया है हार्डवेयर में हिंदी में समस्या आ रही थी उसका समाधान हमने यूनी कोड के माध्यम से किया है । सॉ्फटवेयर विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं । तकनीक के क्षेत्र में हिंदी का प्रयोग सबसे महत्तवपूर्ण है इस संबंध में लीला सॉफ्टवेयर तैयार किया गया है जिसमें 14 क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से आप हिंदी सीख सकते हैं । इसी प्रकार सी-डेक द्वारा मंत्रा नामक एक अन्य साफ्टवेयर विकसित किया जा रहा है जिसमें हम अंग्रेजी पाठ का हिंदी अनुवाद कर सकेंगे । हालांकि इसमें अभी बहुत सुधार की जरुरत है लेकिन प्रयास जारी हैं । इन सबके बावजूद मैं समझता हूं राजभाषा प्रसार में पहली आवश्यकता मानसिकता में बदलाव लाने,दूसरी अनुकूल वातावरण तैयार करने और तीसरी तकनीकी सुविधाओं की उपलब्धता है।

विमानिका:
निजीकरण के इस दौर में राजभाषा के प्रयोग का क्या भविष्य रहेगा ?क्या राजभाषा कार्यान्वयन केवल सरकारी कार्यालयों में ही सिमट कर रह जाएगा ?

डा. प्रदीप कुमार :
देखिए निजीकरण भी अगर हो रहा है तो काम करने वाले तो उसमें हिंदुस्तानी ही हैं । हमारे देश के लोग ही हैं । संस्कृति उनकी भारतीय है , भाषा उनकी हिंदी है । भारत में अधिकाशंत: लोग हिंदी जानते हैं । इसलिए निजीकरण के बाद भी अगर कर्मचारी और अधिकारी हिंदी में बात करने में सुविधा महसूस करते हैं तो हिंदी के प्रयोग को बनाए रखेगें। उदाहरण के लिए अगर एयरलाइनों की ही बात करें तो पिछले कुछ समय से एयरलाइनों में यात्रा करने वाले यात्रियों के प्रोफाइल में बहुत अधिक परिवर्तन आया है । आज हवाई यात्रा आम आदमी की पहुंच के भीतर पहुंची है और यही कारण है कि आज निजी एयरलाइनों ने भी अपने काम-काज में हिंदी की आवश्यकता को पहचाना है ।

विमानिका:
हिंदी दिवस के अवसर पर हिंदी के प्रति एक उत्सवधर्मिता सी दिखती है इस संबंध में आपकी क्या राय है ?

डा. प्रदीप कुमार :
देखिए हिंदी दिवस या हिंदी पखवाड़े से हिंदी के लिए एक वातावरण बनता है । प्रतियोगिताएं आयोजित हो जाती हैं, पुरस्कार मिलते हैं तो लोगों को प्रेरणा मिलती है। उस दौरान राजभाषा कार्यान्वयन की दिशा में काम करने का फोकस बन जाता है । लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हिंदी का प्रचार - प्रसार उसी पखवाड़े या एक दिन तक सीमित हो जाए वो तो सारे साल हमें करना होता है और सारे साल हमारे कार्यक्रम चलते रहते हैं । हिंदी सलाहकार समितियां और नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियां साल में अलग-अलग समय बैठक करती रहती हैं । फिर सारे साल जो संगठन या संस्थान काम करते हैं उसके आधार पर उन्हें पुरस्कार मिलते हैं । राजीव गांधी पुरस्कार योजना है , इंदिरा गांधी पुरस्कार योजना है । यह कोई एक दिन या पखवाड़े के काम पर नहीं बल्कि पूरे साल के काम पर है और इस दिशा में पूरे वर्ष काम होता भी है । संसदीय समितियों की बैठकें पूरे वर्ष जारी रहती हैं । राजभाषा विभाग क्षेत्रीय सम्मेलन आयोजित करता है । चार क्षेत्रीय सम्मेलन इस वर्ष भी आयोजित किए जाने का प्रस्ताव है । अन्य विभागों में भी राजभाषा की दिशा में किए जाने वाले कार्य पूरे साल ही चलते रहते हैं ।

विमानिका :
एक आई.एस अधिकारी के रूप में अलग-अलग विभागों, मंत्रालयों तथा कार्यालयों में कार्य का आपका विस्तृत अनुभव है । राजभाषा विभाग में आपका अनुभव कैसा रहा ?

डा. प्रदीप कुमार :
यह विभाग बिल्कुल अलग है, इसके कार्य पूरे भारतवर्ष में हर प्रदेश में हैं हर प्रदेश में हिंदी में प्रोत्साहन के लिए कार्य हो रहा है । हमारे आठ कार्यान्वयन कार्यालय हैं जो अपने क्षेत्र में काम कर रहे हैं । राजभाषा विभाग की नीति प्रेरणा और प्रोत्साहन और सद्भाव से काम की नीति है । यहां काम करने का स्कोप बहुत ज्यादा है । जैसा मैंने पहले भी कहा कि राजभाषा प्रसार के लिए मानसिकता में बदलाव लाने की जरुरत है और मानसिकता में बदलाव रातों-रात लाना संभव नहीं है वह धीरे-धीरे ही हो सकेगा । इस दिशा में प्रयास जारी हैं ।

विमानिका :
अपनी कार्य व्यस्तता के बावजूद फुर्सत के कुछ क्षणों को आप किस प्रकार बिताना पंसद करते है ?

डॉ प्रदीप कुमार :
जब भी समय मिलता है मैं गोल्फ खेलना और तैराकी करना पंसद करता हूँ। इसके अलावा मुझे ट्रेक्किंग का भी बहुत शौक है अभी हाल ही में मैं अमरनाथ जी की यात्रा से लौटा हूं, उससे पहले कैलाश मानसरोवर के दर्शन किए । संगीत और अध्यात्म से जुड़ी किताबें पढ़ना भी मुझे अच्छा लगता है ।


रविवार, 28 जून 2009

दि न्यू इंडिया एश्योरेंस कं. लि. की रा.का.स. की तिमाही बैठक

दि न्यू इंडिया एश्योरेंस कं.लि., दिल्ली क्षेत्रीय कार्यालय-1 की राजभाषा कार्यान्वयन समिति की तिमाही बैठक दिनांक 29 जून 2009 को दोपहर 2.00 बजे क्षेत्रीय कार्यालय के सम्मेलन कक्ष में क्षेत्रीय प्रबन्धक श्री अमित बिस्वास की अध्यक्षता में संपन्न हुई।

शुक्रवार, 26 जून 2009

इस ब्लॉग का लेखक बनने के लिए

नराकास के इस साझा ब्लॉग पर आप सबका हार्दिक स्वागत है। भारत सरकार के दिल्ली स्थित उपक्रमों का कोई भी कार्मिक इसका लेखक बन सकता है। लेखक बनने के उपरांत आप न केवल अपनी व अपने कार्यालय के कार्मिकों की रचनाएँ इस ब्लॉग पर प्रकाशित कर पाएँगे अपितु अपने उपक्रम से संबन्धित समाचार, चित्र व वीडियो इत्यादि भी स्वयं पोस्ट कर पाएँगे। इच्छुक व्यक्तियों को बस इतना करना है कि वे अपना परिचय bkumar28@gmail.com पर मेल कर दें। आप 9868112929 पर फोन से भी संपर्क कर सकते हैं। आपका परिचय प्राप्त हो जाने पर नराकास के सदस्य सचिव  से अनुमति लेकर आपको ई-मेल से एक आमंत्रण भेजा जाएगा, जिसे स्वीकार कर लेने के उपरांत आप इस ब्लॉग पर सामग्री पोस्ट कर पाएँगे। इसके लिए आपके पास एक गूगल खाता होना आवश्यक है। हिन्दी लिखने के लिए कृपया यूनीकोड फोंटों का प्रयोग करें, अन्यथा हो सकता है कि आपकी रचना ब्लॉग पर प्रदर्शित न हो पाए।
-भूपेन्द्र कुमार
द्वारा, नराकास (उपक्रम), दिल्ली